22 अप्रैल 2025
हाल
ही में योग गुरु बाबा रामदेव का एक वीडियो सामने आया जिसमें उन्होंने हमदर्द
कंपनी के मशहूर पेय रूह अफज़ा को ‘शरबत जिहाद’ कहा और यह भी दावा किया
कि इसे पीने से मदरसों और मस्जिदों का निर्माण होता है। इस बयान ने न सिर्फ विवाद
खड़ा किया, बल्कि दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त
प्रतिक्रिया भी सामने लाई।
कोर्ट की फटकार: "कोई माफी नहीं"
हमदर्द
कंपनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा:
“रामदेव की इस बात ने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। इसकी कोई माफी
नहीं है।”
बाबा
रामदेव की तरफ से बताया गया कि विवादित वीडियो को सोशल मीडिया से हटा दिया गया है,
लेकिन कोर्ट इस बात से संतुष्ट नहीं हुआ।
अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम घृणा भाषण
भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है। लेकिन यह पूर्ण
स्वतंत्रता नहीं है। अनुच्छेद 19(2) इस आज़ादी पर कुछ युक्तिपूर्ण
प्रतिबंध भी लगाता है:
- सार्वजनिक व्यवस्था
- नैतिकता या शालीनता
- राज्य की सुरक्षा
- दूसरों की प्रतिष्ठा (Reputation)
बाबा
रामदेव का बयान इस दायरे से बाहर जाता दिखा, क्योंकि
उसमें धार्मिक आधार पर विभाजनकारी भाषा और एक उत्पाद को सांप्रदायिक रूप
से निशाना बनाने का आरोप शामिल था।
‘हेट
स्पीच’ क्या है?
भारत
में ‘हेट स्पीच’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है,
लेकिन सुप्रीम कोर्ट और लॉ कमीशन की रिपोर्ट्स इसे उस भाषा के रूप
में पहचानती हैं जो:
- समाज में तनाव या हिंसा को भड़का सकती है
- किसी धर्म, जाति, या समुदाय को नीचा दिखाती है
- सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने का जोखिम रखती है
बाबा
रामदेव का बयान इन मानकों पर ‘हेट स्पीच’ के दायरे
में आता है — यही वजह है कि कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया।
मानहानि और धारा 196 (BNS)
बाबा
रामदेव के बयान में हमदर्द कंपनी के व्यापार को भी नुकसान पहुँचाने वाली बातें
शामिल थीं। ऐसे मामलों में निम्नलिखित धाराएं लागू हो सकती हैं:
- BNS की धारा 196 – धर्म के आधार पर वैमनस्य फैलाने के खिलाफ
- BNS की धारा 356(1)-356(2) – मानहानि के खिलाफ
सामाजिक जिम्मेदारी और सार्वजनिक हस्तियों की भूमिका
बाबा
रामदेव जैसे प्रभावशाली व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वे जो भी कहें,
वह तथ्यों पर आधारित, सम्मानजनक और संवेदनशीलता को ध्यान में रखने वाला हो। ऐसे बयान सिर्फ कानूनी
ही नहीं, सामाजिक रूप से भी हानिकारक होते हैं।
निष्कर्ष: बोलने की आज़ादी का मतलब मनमानी नहीं
बोलने
की आज़ादी लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन इसकी सीमा तब तय
होती है जब कोई व्यक्ति अपने शब्दों से:
- समाज में घृणा फैलाए
- धार्मिक भावना भड़काए
- किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाए
दिल्ली
हाईकोर्ट की सख्ती एक स्पष्ट संदेश है – ‘शब्दों की शक्ति है,
लेकिन उसका ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल ज़रूरी है।’