परमादेश का मतलब होता है – आदेश देना।
यह रिट कोर्ट द्वारा तब जारी की जाती है जब कोई सरकारी
अधिकारी या संस्था अपने कानूनी कर्तव्य (legal duty) को पूरा नहीं कर रही हो।
यानी, अगर
कोई अधिकारी ऐसा काम नहीं कर रहा है, जो उसे कानून के अनुसार करना चाहिए,
तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट उसे काम करने का आदेश दे सकती है – और इसी आदेश को परमादेश रिट कहा जाता है।
परमादेश रिट कब दी जाती है?
यह रिट तब दी जाती है जब:
- किसी
व्यक्ति के पास किसी कानूनी कार्य को पूरा करवाने का
वैध अधिकार
होता है।
- सामने
वाला अधिकारी या संस्था उस काम को करने से
मना कर देता
है।
- और उस
काम को करवाने का कोई दूसरा उपाय (remedy) मौजूद नहीं होता।
परमादेश रिट के मुख्य उद्देश्य
1. सरकारी अधिकारी को उसका कानूनी कर्तव्य निभाने के लिए
मजबूर करना।
2. न्याय की अनदेखी या देरी को रोकना।
3. मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।
4. प्रशासनिक उदासीनता और शक्ति के दुरुपयोग को रोकना।
परमादेश रिट का इतिहास
इसकी शुरुआत इंग्लैंड में हुई थी। वहाँ राजा अपने अधिकारियों को आदेश देने के
लिए इस तरह के रिट जारी करते थे ताकि वे जनता के हित में काम करें। भारत में भी
इसी परंपरा को अपनाया गया।
भारत में सुप्रीम कोर्ट का नजरिया
भारत संघ बनाम एस.बी. वोराक्सी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
"परमादेश रिट तब दी जाती है जब किसी व्यक्ति का कानूनी
अधिकार हो और सामने वाले पर उसे पूरा करने की कानूनी जिम्मेदारी हो। यह रिट न्याय
की विफलता को रोकने का एक साधन है।"
किसके खिलाफ परमादेश रिट दी जा सकती है?
- सरकारी
अधिकारी
- सरकारी
विभाग
- विश्वविद्यालय
- नगर
निकाय
- सरकारी
ट्रिब्यूनल (न्यायिक प्राधिकरण)
किनके खिलाफ नहीं दी जा सकती?
- राष्ट्रपति
और
राज्यपाल
के खिलाफ (उनके संवैधानिक
कार्यों को लेकर)
- निजी
व्यक्ति या निजी संस्था (जब तक वे राज्य के साथ मिलीभगत में न हों)
- अनुदान
प्राप्त प्राइवेट संस्था, जब तक उस पर कोई वैधानिक जिम्मेदारी न हो
- संविदा (contract)
से जुड़ी
बातें – परमादेश का विषय नहीं होतीं
कुछ उदाहरण – जहाँ परमादेश रिट दी गई
1. शंकराचार्य केस (मद्रास हाईकोर्ट)
– मठ के बैंक खाते फ्रीज़ करने पर
कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई और परमादेश जारी किया।
2. वैकेंसी से वंचित अभ्यर्थी
– अगर सरकार नियमों का गलत प्रयोग
कर किसी पात्र व्यक्ति को नौकरी से वंचित कर दे।
3. टैक्स रिफंड – अगर सरकार अवैध टैक्स वसूले और उसे लौटाने से मना करे।
4. विश्वविद्यालय द्वारा नियमों में परीक्षा के बाद बदलाव
– छात्रों के अधिकार की रक्षा
हेतु रिट।
जहां परमादेश जारी नहीं किया जाएगा
- जब विवाद
सिर्फ प्राइवेट कॉन्ट्रैक्ट
से जुड़ा हो।
- जब
अधिकारी को काम करने की मर्जी या विवेक का अधिकार
(discretionary power) हो।
- जब
गवर्नर ने दया
याचिका पर फैसला दिया हो।
- जब कोई
प्राइवेट
मध्यस्थ अपने निर्णय में देरी करे।
न्यायिक सक्रियता और नए प्रयोग
आज के दौर में कोर्ट ने निरंतर परमादेश, पूर्वानुमानित परमादेश,
प्रमाणित परमादेश
जैसे नए रूप दिए हैं – ताकि जनता को जल्दी न्याय मिल सके
और प्रशासन निष्क्रिय न बना रहे।
निष्कर्ष (Conclusion)
परमादेश रिट आम जनता के लिए एक शक्तिशाली कानूनी हथियार है, जिससे वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सरकारी अधिकारी
अपने कर्तव्य से भाग न सकें
और न्याय समय पर मिले। यह जनहित और अधिकारों की रक्षा का जरिया है।