24 अप्रैल 2025
दहेज प्रथा हमारे समाज की एक ऐसी बुराई है जिसने न जाने कितनी बेटियों की ज़िंदगी बर्बाद की है। इसी वजह से भारतीय कानून में दहेज लेने और दहेज उत्पीड़न करने को गंभीर अपराध माना गया है। लेकिन पिछले कुछ सालों में एक और चिंता बढ़ती जा रही है — पति के रिश्तेदारों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें फँसाने का चलन।
इसी पर सुप्रीम
कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अब यह प्रवृत्ति
बढ़ रही है कि महिलाएं अपने पति के परिवार वालों — सास,
ससुर, ननद, देवर आदि —
पर भी बिना पुख्ता कारण के दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाने लगी हैं।
इस फैसले में कोर्ट
ने एक महिला द्वारा अपने सास-ससुर और ननद के खिलाफ दायर दहेज उत्पीड़न का मामला
खारिज कर दिया। आइए जानते हैं पूरा मामला और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा।
पूरा मामला क्या था?
यह मामला आंध्र
प्रदेश के गुंटूर जिले का है।
- 2014 में महिला की शादी
हुई।
- शादी के महज 5
महीने बाद वह अपने
मायके चली गई।
- कभी-कभी ससुराल गई,
फिर मायके लौट आई।
- पति ने वैवाहिक अधिकार बहाली
(साथ रहने की अनुमति) का केस डाला।
- इसी बीच 2016
में महिला ने पुलिस में दहेज उत्पीड़न की शिकायत की,
लेकिन फिर समझौता हो गया।
- इसके बाद महिला बिना बताए अमेरिका
चली गई।
- पति ने तलाक का केस दायर किया।
- जवाब में महिला ने फिर से पति
और उसके परिवार के 6 लोगों के खिलाफ
दहेज उत्पीड़न की शिकायत कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की
दो जजों की बेंच —
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति
प्रशांत कुमार मिश्रा ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा:
"अब
दहेज पीड़िता द्वारा पति के परिवार वालों पर झूठे आरोप लगाने की प्रवृत्ति बढ़ती
जा रही है।"
कोर्ट ने पाया कि —
- महिला ने केवल सामान्य आरोप लगाए
हैं।
- कहीं भी शारीरिक या मानसिक
प्रताड़ना का ठोस आरोप नहीं है।
- सिर्फ इतना कहा गया कि वे लोग
ऊँचे पद पर हैं, राजनीतिक संपर्क रखते
हैं।
कोर्ट ने साफ
शब्दों में कहा —
"सिर्फ रिश्तेदार होने भर से किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा
सकता।"
"धारा 85 (BNS) और दहेज निषेध अधिनियम का दुरुपयोग समाज के लिए भी खतरनाक है।"
दहेज से जुड़े
कानून कौन-कौन से हैं?
भारत में दहेज
प्रथा पर रोक लगाने और दहेज उत्पीड़न के खिलाफ दो मुख्य कानून हैं:
1-भारतीय न्याय
संहिता (BNS) की धारा 85
—
अगर कोई महिला को शादी के बाद दहेज के लिए शारीरिक या मानसिक रूप से
प्रताड़ित किया जाए तो ये धारा लगाई जाती है।
2-दहेज
निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961) —
दहेज मांगना, लेना या देना — सब अपराध है।
लेकिन कोर्ट ने कहा
कि इन कानूनों का दुरुपयोग भी समाज में नया अन्याय पैदा कर रहा है।
क्यों ज़रूरी है सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला?
भारत में शादी
टूटने या वैवाहिक विवाद के मामलों में अक्सर देखा गया है कि
- महिला का परिवार सिर्फ बदला
लेने या दबाव बनाने के लिए पति के रिश्तेदारों को भी फँसा देता है।
- कई बार बेगुनाह लोग सालों तक
मुकदमे झेलते रहते हैं।
इसलिए कोर्ट ने इस फैसले के जरिए यह संदेश दिया कि
“कानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।“
“झूठे मामलों से असली पीड़ितों की आवाज भी दब जाती है।“
निष्कर्ष
दहेज उत्पीड़न के
मामलों में सख्त कानून ज़रूरी हैं, लेकिन
उनका ईमानदारी और न्याय के साथ इस्तेमाल होना भी उतना ही ज़रूरी है।
सुप्रीम कोर्ट का
ये फैसला बताता है कि
"कानून का मकसद न्याय करना है, न कि
निर्दोष लोगों को सज़ा दिलाना।"
अंतिम शब्द
अगर आपको या आपके
जानने वालों को दहेज प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा है तो न्याय के लिए आगे आएं।
लेकिन ध्यान रखें कि कानून का दुरुपयोग करके किसी निर्दोष को फँसाना भी अपराध
है।
समानता और न्याय के
लिए कानून का सही इस्तेमाल ही समाज को सुरक्षित और सम्मानजनक बना सकता है।