न्यायिक विष
विज्ञान (Forensic Toxicology),
न्यायिक विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो
अपराधों की जांच में रासायनिक और जैविक परीक्षणों का उपयोग करके विषाक्त पदार्थों
(Toxins) की उपस्थिति, प्रभाव और
मात्रा का पता लगाती है। हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना, जहर देने, मादक
पदार्थों के दुरुपयोग और औद्योगिक विषाक्तता से जुड़े मामलों में विष विज्ञान
के विशेषज्ञ साक्ष्य जुटाकर न्यायालय को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
न्यायिक विष
विज्ञान का अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition of
Forensic Toxicology)
न्यायिक विष
विज्ञान उस विज्ञान को कहते हैं,
जो मानव शरीर में विषाक्त पदार्थों (Toxins), मादक
पदार्थों (Drugs), रसायनों (Chemicals), और जहरीले तत्वों का विश्लेषण कर उनके प्रभाव, मात्रा
और स्रोत का निर्धारण करता है।
परिभाषा:
“न्यायिक विष विज्ञान वह विज्ञान है, जो
शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों और उनके प्रभाव का विश्लेषण कर कानूनी मामलों में
न्यायालय को प्रमाणिक जानकारी प्रदान करता है।”
न्यायिक विष
विज्ञान की उत्पत्ति और विकास (Origin and Development of
Forensic Toxicology)
प्राचीन काल में
विष प्रयोग का उल्लेख:
भारत में प्राचीन
ग्रंथों जैसे अर्थशास्त्र (चाणक्य
द्वारा रचित) और चरक संहिता (आयुर्वेद का प्राचीन
ग्रंथ) में विष प्रयोग का विस्तृत उल्लेख मिलता है। उस समय विष विज्ञान का प्रयोग
न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में किया जाता था, बल्कि
युद्धनीति और राजनीतिक षड्यंत्रों में भी विष का उपयोग होता था।
विषकन्या (Vishkanya)
का संदर्भ:
विशेष रूप से विषकन्या
की अवधारणा उस समय की एक प्रमुख रणनीति थी। विषकन्या वे युवतियां होती थीं,
जिन्हें बचपन से ही थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विष देकर प्रतिरोधक
क्षमता विकसित कराई जाती थी। जब वे युवा हो जाती थीं, तो
उनका प्रयोग दुश्मनों को नष्ट करने के लिए किया जाता था। ये विषकन्याएं जब शत्रु
के साथ संपर्क में आतीं, तो उनके शरीर में मौजूद विष के
प्रभाव से शत्रु की मृत्यु हो जाती थी।
चिकित्सा और युद्ध
में विष का प्रयोग:
- चिकित्सा में उपयोग:
आयुर्वेद में विष को औषधि के रूप में नियंत्रित मात्रा में उपयोग करने का
ज्ञान था, जिसे "विष चिकित्सा" कहा जाता है।
- युद्ध और षड्यंत्र में उपयोग:
युद्ध में दुश्मनों को कमजोर करने या मारने के लिए भोजन या पेय में विष
मिलाकर दिया जाता था।
प्राचीन भारत में
विष विज्ञान का यह ज्ञान आगे चलकर न्यायिक विष विज्ञान (Forensic
Toxicology) के विकास की नींव बना।
18वीं सदी में आधुनिक विष विज्ञान का विकास
आधुनिक
विष विज्ञान (Forensic Toxicology) का विकास 18वीं सदी में यूरोप में मैथ्यू ओर्फिला (Mathieu
Orfila) द्वारा किया गया। उन्हें "विष विज्ञान का जनक" (Father of Toxicology) कहा जाता है। ओर्फिला ने विषों के प्रभाव, पहचान और
विश्लेषण पर वैज्ञानिक अध्ययन किया और शवों में विषाक्त पदार्थों का पता लगाने की
विधियां विकसित कीं। उनकी पुस्तक “Traité des poisons” (Treatise on
Poisons) ने विष विज्ञान को एक औपचारिक विज्ञान के रूप में
स्थापित किया, जिससे यह न्यायिक जांच में महत्वपूर्ण साक्ष्य
प्रदान करने का माध्यम बना।
भारत में न्यायिक विष विज्ञान का विकास
भारत में न्यायिक विष विज्ञान (Forensic
Toxicology) का विकास स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तेजी से हुआ।
स्वतंत्रता के बाद देश में अपराधों की वैज्ञानिक जांच को मजबूत करने और
न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता महसूस की गई। इसी उद्देश्य से सेंट्रल
फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (CFSL) और विभिन्न राज्य
फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (State FSLs) की
स्थापना की गई।
सेंट्रल फॉरेंसिक
साइंस लैबोरेटरी (CFSL):
- CFSL
की स्थापना भारत सरकार द्वारा की गई, जो
विष विज्ञान सहित विभिन्न फॉरेंसिक क्षेत्रों में अनुसंधान और जांच करती है।
- यह देश के प्रमुख अपराध मामलों
में विष विज्ञान विशेषज्ञता प्रदान करती है और न्यायालय में ठोस साक्ष्य
प्रस्तुत करती है।
राज्य फॉरेंसिक
विज्ञान प्रयोगशालाएं (State FSLs):
- प्रत्येक राज्य में स्थापित राज्य
फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाएं (State FSLs)
विष विज्ञान के मामलों में स्थानीय स्तर पर जांच करती हैं।
- ये प्रयोगशालाएं पोस्टमॉर्टम
रिपोर्ट, रक्त, मूत्र
और अन्य जैविक नमूनों का विष विज्ञान परीक्षण करके अदालतों को रिपोर्ट
प्रस्तुत करती हैं।
आधुनिक तकनीक और विकास:
भारत में गैस
क्रोमैटोग्राफी (GC), हाई-परफॉर्मेंस
लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (HPLC) और मास
स्पेक्ट्रोमेट्री (MS) जैसी आधुनिक तकनीकों के
इस्तेमाल ने न्यायिक विष विज्ञान को अधिक उन्नत और सटीक बनाया है। इससे अपराधों
में शामिल विषाक्त पदार्थों की पहचान और उनके प्रभाव का विश्लेषण कर न्यायालय को
सटीक रिपोर्ट प्रदान करना संभव हुआ है।
न्यायिक विष
विज्ञान की शाखाएं (Branches of Forensic Toxicology)
न्यायिक विष
विज्ञान को विभिन्न शाखाओं में विभाजित किया जा
सकता है,
जो अलग-अलग प्रकार के विषाक्त पदार्थों और परिस्थितियों की जांच में
मदद करती हैं:
(i) पोस्टमॉर्टम
विष विज्ञान (Postmortem Toxicology)
- मृत्यु के बाद शव से प्राप्त रक्त,
मूत्र और ऊतकों का विश्लेषण।
- आत्महत्या,
हत्या या दुर्घटना में विषाक्त पदार्थों का निर्धारण।
(ii) दवा और
मादक पदार्थों का विश्लेषण (Drug and Narcotic Toxicology)
- मादक पदार्थों,
शराब और अन्य अवैध दवाओं का शरीर पर प्रभाव।
- शराब पीकर वाहन चलाने (Drunken
Driving) और नशे से संबंधित अपराधों की जांच।
(iii) औद्योगिक
और पर्यावरण विष विज्ञान (Industrial and Environmental Toxicology)
- औद्योगिक रसायनों और पर्यावरणीय
प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव।
- विषैले गैस रिसाव और औद्योगिक
दुर्घटनाओं की जांच।
(iv) चिकित्सकीय
विष विज्ञान (Clinical Toxicology)
- चिकित्सा उपचार में दवाओं की
विषाक्तता और दुष्प्रभावों का विश्लेषण।
- चिकित्सीय लापरवाही और ओवरडोज से
हुई मौतों की जांच।
न्यायिक विष
विज्ञान के प्रमुख तत्व (Major Components of Forensic
Toxicology)
(i) विष की
पहचान (Identification of Poisons)
विष विज्ञान
विशेषज्ञ शरीर के नमूनों में जहरीले पदार्थों की पहचान करते हैं।
- सामान्य विष:
आर्सेनिक, साइनाइड, मरकरी,
और कार्बन मोनोऑक्साइड।
- मादक द्रव्य:
हेरोइन, कोकीन, और
शराब।
(ii) विष की
मात्रा का निर्धारण (Quantification of Toxins)
विष विज्ञान
विशेषज्ञ यह भी निर्धारित करते हैं कि शरीर में कितनी मात्रा में विष मौजूद है और
उसका प्रभाव क्या हो सकता है।
(iii) विष
का प्रभाव (Effect of Toxins)
विष के शरीर पर
पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कर यह तय किया जाता है कि वह घातक था या नहीं।
न्यायिक विष
विज्ञान में प्रयोग की जाने वाली विधियां (Methods Used in
Forensic Toxicology)
न्यायिक विष
विज्ञान में कई उन्नत तकनीकों का प्रयोग किया जाता
है,
जो अपराध की जांच में सटीक परिणाम देती हैं।
(i) गैस
क्रोमैटोग्राफी (Gas Chromatography - GC)
- तरल और गैसीय पदार्थों का
पृथक्करण और विश्लेषण।
- मादक पदार्थों और जैविक सैंपलों
में विषाक्त तत्वों की पहचान।
(ii) उच्च
प्रदर्शन द्रव क्रोमैटोग्राफी (High-Performance Liquid Chromatography -
HPLC)
- द्रव पदार्थों का सटीक विश्लेषण।
- दवाओं और जैविक नमूनों में मौजूद
विषाक्त तत्वों का पता लगाना।
(iii) स्पेक्ट्रोस्कोपी
(Spectroscopy)
- प्रकाश की तरंगदैर्ध्य के आधार पर
रसायनों की पहचान।
- शराब और नशीले पदार्थों की जांच।
(iv) मास
स्पेक्ट्रोमेट्री (Mass Spectrometry)
- द्रव्यमान और आवेश के आधार पर
रासायनिक पदार्थों का विश्लेषण।
- जैविक नमूनों में विषाक्त तत्वों
की उपस्थिति की पुष्टि।
भारतीय कानून और
न्यायिक विष विज्ञान (Indian Laws and Forensic Toxicology)
भारतीय विधि
प्रणाली में न्यायिक विष विज्ञान के साक्ष्यों को
स्वीकार किया जाता है और कई कानूनों में इसे मान्यता प्राप्त है।
(i) भारतीय न्याय
संहिता, 2023:
- धारा 123:
जहर देकर चोट पहुंचाने का अपराध।
- धारा 103:
हत्या के मामलों में विष के उपयोग की जांच।
- धारा 106:
चिकित्सीय लापरवाही से हुई मृत्यु में विष का विश्लेषण।
(ii) भारतीय
साक्ष्य अधिनियम, 2023:
- धारा 39:
विशेषज्ञ की राय को साक्ष्य माना जाता है।
- धारा 40:
न्यायालय को विशेषज्ञ साक्ष्यों का मूल्यांकन करने का अधिकार।
न्यायिक विष
विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण भारतीय न्यायालय निर्णय (Important
Indian Court Judgments on Forensic Toxicology)
(i) प्रियदर्शिनी
मट्टू केस (Priyadarshini Mattoo Case, 2006)
डीएनए और विष
विज्ञान साक्ष्यों ने अपराधी की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(ii) अरुणा
शानबाग केस (Aruna Shanbaug Case, 2011)
चिकित्सकीय
लापरवाही और मादक पदार्थों के दुष्प्रभाव के विश्लेषण में विष विज्ञान साक्ष्य ने
न्यायालय में प्रभाव डाला।
(iii) शीना
बोरा मर्डर केस (Sheena Bora Murder Case, 2012)
पोस्टमॉर्टम
रिपोर्ट और विष विज्ञान विश्लेषण ने हत्या के उद्देश्य को स्पष्ट किया।
न्यायिक विष
विज्ञान में चुनौतियां (Challenges in Forensic Toxicology)
(i) नमूना
संग्रह में त्रुटि: नमूना दूषित होने से
परिणाम गलत हो सकते हैं।
(ii) तकनीकी
विशेषज्ञता की कमी: विष विज्ञान के
विशेषज्ञों की कमी।
(iii) न्यायिक
प्रक्रिया में देरी: विष विज्ञान रिपोर्ट में
देरी से न्याय में बाधा।
निष्कर्ष (Conclusion)
न्यायिक विष
विज्ञान अपराधों की जांच में एक महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है, जिससे न्यायालय को ठोस साक्ष्य मिलते
हैं। आधुनिक विष विज्ञान तकनीकों के माध्यम से अपराधियों को सजा दिलाना और निर्दोष
को बचाना आसान हो गया है। हालांकि, इस क्षेत्र में चुनौतियों
को दूर करके भारतीय न्याय प्रणाली को और अधिक सशक्त और निष्पक्ष बनाया जा सकता है।
न्यायिक विष
विज्ञान (Forensic Toxicology) से
संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. न्यायिक
विष विज्ञान (Forensic Toxicology) क्या है?
उत्तर:
न्यायिक विष विज्ञान न्यायिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानव शरीर, रक्त, मूत्र,
और अन्य जैविक नमूनों में विषाक्त पदार्थों (Toxins), मादक द्रव्यों (Drugs), और रसायनों का विश्लेषण कर
उनके प्रभाव, मात्रा और स्रोत का निर्धारण करती है। यह हत्या,
आत्महत्या, दुर्घटना और मादक पदार्थों से
जुड़े मामलों में न्यायालय को प्रमाणिक साक्ष्य प्रदान करती है।
2. भारत में
न्यायिक विष विज्ञान का विकास कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
भारत में न्यायिक विष विज्ञान का विकास स्वतंत्रता प्राप्ति के
बाद हुआ। अपराधों की वैज्ञानिक जांच को मजबूत करने के उद्देश्य से सेंट्रल
फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (CFSL) और विभिन्न राज्य
फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (State FSLs) की
स्थापना की गई। आधुनिक तकनीकों जैसे गैस क्रोमैटोग्राफी (GC), हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (HPLC), और
मास स्पेक्ट्रोमेट्री (MS) ने विष विज्ञान को अधिक सटीक और
प्रभावी बनाया।
3. न्यायिक
विष विज्ञान में किस प्रकार की जांच की जाती है?
उत्तर:
न्यायिक विष विज्ञान में विभिन्न प्रकार की जांच की जाती है,
जिनमें प्रमुख हैं:
- पोस्टमॉर्टम विष विज्ञान (Postmortem
Toxicology): शव से प्राप्त रक्त,
मूत्र और ऊतकों का विश्लेषण।
- दवा और मादक पदार्थों का विश्लेषण
(Drug and Narcotic Toxicology):
मादक पदार्थों और शराब की पहचान।
- औद्योगिक और पर्यावरण विष विज्ञान
(Industrial and Environmental Toxicology):
औद्योगिक रसायनों और पर्यावरणीय प्रदूषण का विश्लेषण।
- चिकित्सकीय विष विज्ञान (Clinical
Toxicology): चिकित्सा उपचार में
दवाओं की विषाक्तता और दुष्प्रभावों का विश्लेषण।
4. गैस
क्रोमैटोग्राफी (GC) और हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड
क्रोमैटोग्राफी (HPLC) का क्या उपयोग है?
उत्तर:
- गैस क्रोमैटोग्राफी (GC):
तरल और गैसीय पदार्थों का पृथक्करण और विश्लेषण करके मादक
पदार्थों और जैविक नमूनों में विषाक्त तत्वों की पहचान करती है।
- हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड
क्रोमैटोग्राफी (HPLC):
द्रव पदार्थों और दवाओं के सटीक विश्लेषण में उपयोग होती है,
जिससे विषाक्त पदार्थों का पता लगाया जाता है।
5. न्यायिक
विष विज्ञान में Mathieu Orfila का क्या योगदान है?
उत्तर:
मैथ्यू ओर्फिला (Mathieu Orfila) को "विष विज्ञान का जनक" (Father of Toxicology) कहा जाता है। 18वीं सदी में उन्होंने विषों के
प्रभाव, पहचान और विश्लेषण पर वैज्ञानिक अध्ययन किया। उनकी
पुस्तक “Traité des poisons” (Treatise on Poisons) ने
विष विज्ञान को एक औपचारिक विज्ञान के रूप में स्थापित किया, जिससे यह न्यायिक जांच में महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करने का माध्यम बना।
6. भारत में
न्यायिक विष विज्ञान से जुड़े प्रमुख न्यायालयीय निर्णय कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में न्यायिक विष विज्ञान से जुड़े प्रमुख न्यायालयीय निर्णय
हैं:
- प्रियदर्शिनी मट्टू केस (2006):
डीएनए और विष विज्ञान साक्ष्यों ने अपराधी की पहचान में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- अरुणा शानबाग केस (2011):
चिकित्सकीय लापरवाही और मादक पदार्थों के दुष्प्रभाव के
विश्लेषण में विष विज्ञान साक्ष्यों ने न्यायालय को प्रभावित किया।
- शीना बोरा मर्डर केस (2012):
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और विष विज्ञान विश्लेषण ने हत्या के
उद्देश्य को स्पष्ट किया।
7. न्यायिक
विष विज्ञान में किस प्रकार की चुनौतियां आती हैं?
उत्तर:
न्यायिक विष विज्ञान में प्रमुख चुनौतियां हैं:
- नमूना संग्रह में त्रुटि:
नमूनों के दूषित होने से परिणाम गलत हो सकते हैं।
- तकनीकी विशेषज्ञता की कमी:
विष विज्ञान के प्रशिक्षित विशेषज्ञों की संख्या कम है।
- न्यायिक प्रक्रिया में देरी:
विष विज्ञान रिपोर्ट में देरी होने से न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती
है।
8. क्या
न्यायालय में न्यायिक विष विज्ञान की रिपोर्ट को प्रमाणिक साक्ष्य माना जाता है?
उत्तर:
हाँ, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023
की धारा 39 और 40 के तहत विशेषज्ञ की राय को न्यायालय में प्रमाणिक साक्ष्य माना जाता है।
न्यायालय को विशेषज्ञ साक्ष्यों का मूल्यांकन करने और उन्हें साक्ष्य के रूप में
स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त है।
9. न्यायिक
विष विज्ञान के लिए भारतीय कानूनों में कौन-कौन सी धाराएं लागू होती हैं?
उत्तर:
न्यायिक विष विज्ञान से जुड़े भारतीय कानून हैं:
- भारतीय न्याय संहिता,
2023:
- धारा 123:
जहर देकर चोट पहुंचाने का अपराध।
- धारा 103:
हत्या के मामलों में विष का उपयोग।
- धारा 106:
चिकित्सकीय लापरवाही से हुई मृत्यु में विष का विश्लेषण।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम,
2023:
- धारा 39:
विशेषज्ञ की राय को साक्ष्य माना जाता है।
- धारा 40:
न्यायालय को विशेषज्ञ साक्ष्यों का मूल्यांकन करने का अधिकार।
10. न्यायिक
विष विज्ञान का भविष्य भारत में कैसा है?
उत्तर:
न्यायिक विष विज्ञान का भविष्य भारत में अत्यंत उज्जवल है। आधुनिक
तकनीकों के विकास और वैज्ञानिक अनुसंधान में प्रगति के साथ गैस क्रोमैटोग्राफी
(GC), मास स्पेक्ट्रोमेट्री (MS) और डीएनए प्रोफाइलिंग जैसी तकनीकें न्यायालय को अधिक सटीक और
प्रमाणिक साक्ष्य प्रदान कर रही हैं। सरकार द्वारा फॉरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र
में निवेश और प्रशिक्षित विष विज्ञान विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाने से इस क्षेत्र
को और अधिक मजबूत किया जा सकता है।